वो बदनाम उसे कर रहे हैं,जो मशहूर है


आशुतोष रंजन
गढ़वा

आम जनजीवन के कार्यों से राजनीति का क्षेत्र बिल्कुल अलग होता है,क्योंकि यहां ज़ुबानी नहीं ज़मीनी हक़ीक़त परिलक्षित करनी पड़ती है,लेकिन ये उसके लिए यानी उन राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों के लिए होता है जो सही मायने में नेक नियति के साथ साथ ईमानदार प्रयास करते हुए अपने प्रतिनिधित्व क्षेत्र का विकास कर रहे होते हैं,उनके लिए कतई नहीं होता जो केवल ज़मीन से दूर ज़ुबानी वायदों तक सीमित होते हैं,पर जो ज़मीन से जुड़ कर और लोगों के दिली भावना का दिल से कद्र करते हुए अपने विकासीय सोच को पूरे पारदर्शी तरीके से सरजमीन पर कार्यान्वित कराते हैं वो वर्तमान राजनीति के दृष्टिकोण से विरले ही कहे जाते हैं,जैसा की झारखंड के गढ़वा विधायक सह राज्य के मंत्री मिथिलेश ठाकुर कहे जा रहे हैं,पर अफ़सोस तो तब होता है जब इतना सबकुछ के बाद भी कुछ लोग जहां एक ओर उनके कार्यों को झुठलाते हैं तो वहीं दूसरी ओर राजनीतिक गलियारे में तोहमत लगाया करते हैं,पर उनकी बातों का करारा ज़वाब बात से नहीं बल्कि काम से देने वाले मंत्री मुस्कुराते हुए क्या कहते हैं आइए आपको बताता हूं।

बदनाम भी वही होते हैं,जो मशहूर होते हैं: – वो एक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे तो उक्त विषय के अलावे मैं पूछा की एक लंबे वक्त तक क्षेत्र की बदहाली ख़ुद से देखने और लोगों की मानसिक व्यथा को दिली शिद्दत से महसूस करने के बाद उनकी परेशानी को दूर करने का ख़्वाब देखते हुए आज उसे पूरा करते हुए अनगढ़ गढ़वा को एक नए स्वरूप में गढ़ने में अनवरत प्राणपन से जुटे रहने के बाद भी आपको इंगित करते हुए विपक्षियों द्वारा तोहमत लगाया जाता है,क्या कहेंगे आप,मेरे सवाल के पूरा होते ही पहले तो वो मुस्कुराते हैं,फिर शायराना अंदाज़ में कहते हैं की चर्चा – ए – आम हो तो किस्से भी ज़रूर होते हैं,अरे भाई मेरे तोहमत भी उन्हीं पर लगते और बदनाम भी वही होते हैं,जो मशहूर होते हैं,उन्होंने उक्त पंक्ति बोल कर यह जताना चाहा की हम पर वो तोहमत लगावें,बहुत कुछ कहते हुए मुझे बदनाम करने की साज़िश रचें,लेकिन आप भी बखूबी वाक़िफ हैं की इन सारी बातों से ना तो मुझ पर कोई असर होता है और ना ही मेरा निश्चय डिगता है,क्योंकि मैं गढ़वा को अपने वादे के मद्देनजर नहीं बल्कि ख़ुद के ख्वाबों के अनुसार विकसित कर रहा हूं,इसलिए मुझे तनिक भी परवाह नहीं है की वो मेरे बारे में क्या बोलते और प्रचारित करते हैं,क्योंकि मेरे द्वारा किया जा रहा विकासीय काम उनके लिए पचा पाना मुश्किल है,जो व्यक्ति और उक्त राजनीतिक पार्टी केवल ज़ुबानी लफ्फाजी पर राजनीति करता आया हो उसे भला मेरा ज़मीनी काम पच जाए और लोगों द्वारा दुहराया जा रहा मेरा नाम उनके कानों को सहन हो जाए यह भला कहां संभव है,नतीज़ा है की वो कुछ भी तोहमत लगाने और कई तरह की झूठी बात कहते हुए लोगों को बरगलाने की असफल कोशिश में जुटे हुए हैं,लेकिन शायद उन्हें इल्म नहीं है की जिसे वो अपनी मिट्ठी और लुभावनी बातें कह रहे हैं उन पर उस बातों का ज़रा सा भी असर नहीं हो रहा है,क्योंकि लोगों द्वारा गुज़रे दशक में जिस परेशानी को झेला गया है,जिस समस्या से वो आजीज़ हुए हैं,अब जब उनकी परेशानी के साथ सात हालात बदल रहे हैं तो वो भला वैसे लोगों की मखमली आवाज़ को क्यों ना नज़रअंदाज करें,क्योंकि कहना कौन कहे बिना कुछ कहे हुए उनकी दशकों की परेशानी सही मायने में कंक्रीट तरीके से दूर हो रही हो तो वो क्यों कर उनकी बातों में आएं,अब रही बात तोहमत,नेकनामी और बदनामी तो लोग उसे ही बदनाम किया करते हैं जिसके हिस्से में नाम आता है,इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है,हां बल्कि अपनी सोच और बलवती होती है और मुझमें और ताकत का संचार होता है जिससे और दुगुने उत्साह के साथ मैं अपने सोच को कार्यरूप में परिणत करता हूं,साथ ही कहते हैं की राजनीति ही वो क्षेत्र है जहां ख़ुद को बेहतर प्रतिनिधि स्थापित करने के लिए ज़ुबानी नहीं बल्कि ज़मीनी लंबी लकीर खींचनी पड़ती है।