इस दुख का कोई पार नहीं है


आशुतोष रंजन
गढ़वा

जीवन जीने के क्रम में सभी कष्ट दुखद होता है लेकिन सबसे अधिक असहनीय दर्द कहा जाता है बाप के कंधे पर बेटे का जनाजा जाना,यही दुखद पीड़ा आज गढ़वा जिले के मेराल थाना क्षेत्र निवासी शहाबुद्दीन को हुई,क्योंकि उनके सामने बेटे की मौत हो गई,आख़िर ये घटना कैसे घटित हुई इस बावत आपको बताएं की शहाबुद्दीन अपने बेटा इस्माइल के साथ खेत में काम कर रहे थे,उसी बीच जब बारिश शुरू हुई तो उस बारिश से बचने के लिए दोनों एक पेड़ के नीचे छुप गए,उसी बीच बारिश के साथ वज्रपात हुई,और उसी वज्रपात में शहाबुद्दीन के बेटे इस्माइल की मौत हो गई,साथ ही शहाबुद्दीन खुद घायल भी हो गए,जिनका इलाज़ सदर अस्पताल में चल रहा है,इलाज़ के दरम्यान वो बार बार इसलिए बेहोश नहीं हो जा रहे हैं की वो भी उस वज्रपात में घायल हुए हैं,बल्कि इसलिए वो अचेत हो रहे हैं की उनके सामने बेटे की जान चली गई,उन्हें जब भी होश आ रहा है वो बस एक ही बात कहते सुने जा रहे हैं की काश बेटे की जगह उनकी मौत हो जाती,लेकिन होनी को तो शहाबुद्दीन के कंधे पर बेटे का जनाजा उठाने का दुख देना था,तो भला उनकी मौत कैसे होती.?