हसीन होता है सपना,लेकिन नहीं होता है वो अपना


आशुतोष रंजन
गढ़वा

राजनीति में झूठ को ही सफ़लता का पैमाना कहा जाता है,आप अगर राजनीति में हैं और आपको बढ़िया से झूठ बोलने आता है तो आप एक सफ़ल राजनेता हैं,लेकिन अपने पलामू प्रमंडल में एक राजनेता ऐसा भी है जो सच को सच,सही को सही,झूठ को झूठ और गलत को सिरे से गलत कहने का माद्दा रखता है,आख़िर हम बात किसकी कर रहे हैं,आइए आपको इस ख़ास ख़बर के ज़रिए बताते हैं।

मैं बोल दिया हूं: – अरे मोहन जी क्या हुआ,आप तनिक भी मत चिंतित हों,मैं बोल दिया हूं,क्या हालचाल है रघुवीर जी आप फिर परेशान होने आ गए,मैं तो उसी रोज़ आपके सामने ही अमुक अधिकारी से बोल दिया था,यह तो एकमात्र बानगी है,ऐसे कई अल्फाज़ लोगों को उन नेताओं से सुनने को मिलते हैं जिन्हें वो एक आस के साथ अपना प्रतिनिधि चुनते हैं,पर क्या उनकी आस पूरी हो पाती है इसका आभास आपको करना हो तो कभी उन अबोध लोगों के क़रीब चले जाइए,मैं यहां किसी विशेष क्षेत्र की बात नहीं कर रहा,कई ऐसे राजनेता हैं जिनके फितरत में ऐसा बोलना शुमार है,लेकिन उनमें भी एक राजनेता ऐसा है जिसका व्यवहार ना तो पद पर रहने के बाद बदला और ना ही आज ही बदलाव हुआ,वो कल भी वही थे जो आज हैं,दरअसल हम बात यहां गढ़वा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के पूर्व विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी की कर रहे हैं,जो उनकी दिनचर्या कल थी वही आज भी है,वो कल भी अहले सुबह से देर रात तक लोगों के बीच रहते हुए उनकी समस्या को सुनते और उसका समाधान किया करते थे वो आज भी ठीक उसी तरह लोगों के बीच मौजूद हैं,बात अगर प्रतिनिधित्व काल की करें तो सहजता से किसी से मिलना और मिठास भरे लहजे में उनसे बात करते हुए सामने वाले को अपना बना लेने वाले पूर्व विधायक एक बड़े जनाधार वाले प्रतिनिधियों में शुमार होते हैं,ऐसे तो वर्तमान गुजरते वक्त में जब वो किसी कार्यक्रम में शिकरत करते हैं तो वहां होने वाली लोगों की मौजूदगी अहसास कराती है की वो किस हद तक लोगों के बीच लोकप्रिय हैं,साथ ही क्षेत्र के लोगों के दिलों में वो किस गहराई तक पेवस्त हैं वो उस रोज़ नुमाया हुआ जिस रोज़ अभी हाल में उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी जिसमें वो गंभीर रूप से चोटिल हुए थे,सुबह घटना घटित होने के बाद जब उनका सदर अस्पताल में इलाज़ शुरू हुआ और जैसे जैसे लोगों को जानकारी होती गई सबके क़दम खुद ब ख़ुद अस्पताल की ओर बढ़ चले,जहां पहुंच सभी अपने नेता का हाल जानने को आतुर दिखे,उधर जहां एक ओर वो इलाजरत रहे तो इधर उन्हें चाहने वाले लोग लगातार पूजा हवन में जुटे रहे,जब तीन माह बाद वो स्वस्थ हो कर गढ़वा लौटे उस रोज़ लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं था,अपने लोग और क्षेत्र के प्रति उनके दिली समर्पण का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं की लोग जब उनसे उनके तबियत के विषय में पूछते थे तो वो उसका ज़वाब देने से पहले गढ़वा का हाल पूछते थे,आज वो पूरी तरह स्वस्थ हैं और क्षेत्र में लोगों के बीच मौजूद रह कर उनकी परेशानी को दिली शिद्दत से सुनते हुए उसके समाधान में जुटे हुए हैं,साथ ही वो एक बात ज़रूर कह रहे हैं की आज लोग सपना बहुत देख रहे हैं,लेकिन शायद वो जानकारी से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं या मुगालते में हैं की उनका सपना उस हसीन ख़्वाब की तरह है जो कतई पूरा नहीं होने वाला है,क्योंकि जिसके ज़रिए वो अपने सपने को पूरा हो जाने का ख़्वाब संजोए हुए हैं वही उनसे दूरी बना लिए हैं जो शायद अब कभी नजदीकियों में नहीं बदलेगी,साथ ही कहा की मैं संजीदगी से क्षेत्र के लोगों का साथ महसूस कर रहा हूं,बस यही साथ आने वाले वक्त तक बनाए रखना है ताकि मेरा जो दिली लक्ष्य है आपके मुरझाए चेहरों पर खुशी लाने का उस लक्ष्य को हासिल कर सकूं।