गढ़वा के कई मुखिया जांच के दायरे में


आशुतोष रंजन
गढ़वा

कहने को तो नहीं कर रहा है आपको उनका काम सूट,पर ना जाने किसके शह पर मिली हुई है मुखिया जी को लूट की छूट,सत्ता का विकेंद्रीकरण कर पंचायती राज व्यवस्था का गठन किया गया था,एक लंबे वक्त के बाद चुनाव हुआ,गांव में विकास पहुंचेगा,इस दिली आस के साथ लोगों ने अपने बीच के सक्रिय लोगों को अपना प्रतिनिधि चुना,उम्मीद भी थी की कुछ अपना भी उपार्जन करते हुए ही सही वो योजना निधि को शत प्रतिशत खर्च कर धरातल पर योजना का कार्यान्वयन कराएंगे,लेकिन आलम क्या है शायद मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है।

किसके शह पर मुखिया जी को मिली है लूट की छूट : – मुझे यहां यह बताने की भी ज़रूरत नहीं है की अपना गढ़वा पिछड़े जिलों में शुमार होता है,आप सभी तो इस जानकारी से वाक़िफ होने के साथ साथ समस्या से भी दो चार हो रहे हैं,लेकिन मैं आपको बताऊं की जब कोई बड़ा राजनीतिक कार्यक्रम हो या जिला में कोई बड़ा ओहदेदार अधिकारी पहुंचे उनके मुंह से जब यह सुनने को मिलता है की गढ़वा को राज्य से ले कर देश स्तर पर पिछड़े जिले को रूप में जाना जाता है तो सोचिए कितना कष्ट होता होगा,लेकिन एक कलमकार क्या कर सकता है,वो चाहे अखबार का पत्रकार हो या किसी न्यूज़ चैनल का,वो अपने स्तर से आपकी समस्या आपकी परेशानी को अपनी लेखनी के ज़रिए सामने लाता है पर अफ़सोस उस पर जिसे अमल करना है वो उसे नजरंदाज किए हुए हैं,हम बात यहां केवल पंचायत प्रतिनिधि यानी मुखिया जी की कर रहे हैं,सूत्र बताते हैं की अगर गांव में कुछ काम हो भी रहा है तो वो विधायक के ज़रिए हो रहा है,जिसका लाभ मुखिया जी इस तरीके से ले रहे हैं की उक्त काम मैं ही कार्यान्वित करा रहा हूं,और उसके पीछे वो पंचायत की योजना को गौण कर दे रहे हैं,जिले के कई मुखिया के बारे में बताया जा रहा है की वो पुराने वाले ढर्रे पर ही काम कर रहे हैं,यानी की सीधे रूप में लेन देन वाली प्रणाली के तहत ही काम किया जा रहा है,मुझे फिर से बताने की क्यों ज़रूरत है,आप गांव में रह रहे हैं,काम आपके बीच से कार्यान्वित हो रहा है तो काम से पहले कितना देना पड़ रहा है उससे आप नावाकिफ नहीं हैं,इतना के बाद भी अफ़सोस इस बात का है की जहां एक ओर सही रूप में धरातल पर योजना उतर नहीं पा रहा है,तो वहीं यह भी सोचिए की जिसे योजना मिल भी रहा है तो उसे उस योजना को हासिल करने से पहले एक मोटी रकम देनी पड़ रही है,ऐसे में वो उक्त योजना को कैसे कार्यान्वित करा पाएगा यह सोचनीय विषय है,अब सवाल उठता है की आख़िर किसके शह पर मुखिया जी को लूट की छूट मिली हुई है..?

कई मुखिया जांच के दायरे में : – मुखिया जी आप बेशक खुला खेल खेलने में रत हैं लेकिन आप इस मुगालते में ना रहें की आप नज़रों से ओझल हैं,आप पर नज़र बनी हुई है,हमारी नज़र नहीं भाई,जिसे जांच और कार्रवाई करना है उनकी नज़र आप पर और आपकी कार्यशैली पर है,ऐसे में आप और आपका काम जांच और आप कार्रवाई की जद में आ जाएं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं,लेकिन यहां यह भी ज़रूर कहना चाहूंगा की जिस तरह सूत्र बताते हैं की लेन देन में भले केवल मुखिया जी का नाम बदनाम है पर उस लेन देन में और लोगों का भी हिस्सा शामिल है,किसका कितना हिस्सा है उसे हम अगले ख़बर में सीधे रूप में बताएंगे,पर ऐसे में सवाल उठता है की लूट की छूट की बात भले सामने आ रही है,जानकारी भी सबकुछ है,लेकिन क्या सच में जांच और कार्रवाई होगी..?