राजनीति में ला कर अपराधी को रास्ते से हटाने का गवाह बन चुका है पलामू


आशुतोष रंजन
गढ़वा

यूपी का माफिया डॉन अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ आतंक का पर्याय था,जो दूसरों का जान लिया था,एक रोज़ तो उसका उसी तरह अंत होना ही था,पर जिस तरह उन दोनों का अंत हुआ वो सही है या गलत मैं इस विषय पर भी चर्चा नहीं करना चाहता,बल्कि मैं तो यह जानना चाह रहा हूं की जो जरायम यानी अपराध की दुनिया से कुछ कुछ अलग करते हुए राजनीति में आए हैं या आने की जुगत में हैं,वो इस घटना के बाद क्या सावधानी नहीं बरतेंगे,क्या उन्हें चौकन्ना नहीं होना होगा,क्योंकि अतीक और अशरफ लाख अपराधी था पर जिस वक्त दोनो को मारा गया वो कोई साधारण नहीं बल्कि विशेष सुरक्षा घेरा में था,लेकिन उसके बावजूद वो महफूज़ नहीं रह सका,ऐसे में सवाल उठता है की वैसे लोग ख़ुद को कैसे सुरक्षित रख पाएंगें जो कल जिस भीड़ से दूर रहते थे आज राजनीति में आने के बाद उन्हें उसी भीड़ के क़रीब जाना और रहना पड़ रहा है,क्योंकि कुख्यात अपराधी को राजनीति में ला कर उसे रास्ते से हटाने का झारखंड का पलामू गवाह बन चुका है।

अपराध से राजनीति में आने वाले: – अतीक और अशरफ के अंत ने दो समझ को जन्म दिया,पहला यह की अगर कोई अपराधी बन यह समझ लेता है की अब तो सबकुछ उसका ही है,लेकिन उसे उस वक्त शायद इल्म नहीं होता की जिस तरह आज वो दूसरों की जान ले रहा है,एक वक्त ऐसा भी आएगा जब ख़ुद उसका भी अंत होगा,जैसा अतीक और अशरफ का हुआ,बात अगर दूसरे समझ की करें तो अगर कोई अपराध की दुनिया से अपने को थोड़ा अलग करते हुए लेकिन उसी आपराधिक खौफ़ के ज़रिए राजनीति की दुनिया में क़दम रखता है,और कामयाब भी होता है,लेकिन जहां एक ओर उसे कामयाबी मिलती है तो वहीं दूसरी ओर वो पूर्व की तरह नहीं बल्कि एक नेता की तरह जीवन जीने लगता है,कभी अपने गुर्गों को छोड़ जिस भीड़ से वो बहुत दूर रहा करता था आज उसे उसी भीड़ का हिस्सा बनना पड़ता है,नतीजा आपके सामने है,ऐसे में ही हमने सवाल किया की क्या अब सावधान हो जायेंगें अपराध से राजनीति में आने वाले..?