वो कर लें खुली बहस,नहीं सुझेगा ज़वाब: मंत्री


आशुतोष रंजन
गढ़वा

अहले सुबह जगना,और फिर कुछ ही देर बाद जनता से मिलने का दौर शुरू होना,बिना कुछ खाए काफ़ी देर तक लोगों से मिलते हुए उनकी बात समस्या और परेशानी को सुनना,साथ ही केवल सुन कर चुप्पी नहीं साध लेना,जो तुरंत होने के लायक हो उसका त्वरित समाधान करना,साथ ही जटिल परेशानी के निदान हेतु जुट जाना,उधर खुद नहीं बल्कि लोगों द्वारा कई बार कहे जाने के बाद मुलाकात कक्ष से अंदर घर में जाना और कुछ ही पल में तैयार हो कर निर्धारित कार्यक्रम में शिरकत करने को निकलना,शाम तक कई कार्यक्रमों,बैठकों में शामिल होने और वहां भी मौजूद लोगों से मुखातिब हो कर उनकी समस्या सुन कर वहां भी समाधान करना,अब देर शाम होने के बाद वैवाहिक के साथ साथ कई निमंत्रणों में जाना,और जिस वक्त हम आप घरों में होते हैं उनका पूरी रात निमंत्रण के अनुसार हर जगह शामिल हो कर भोर तक लौटना,और फिर बिस्तर पर पहुंच लाख सोने की कोशिश करने के बाद भी क्षेत्र की सालती चिंता से नींद नहीं आने की सूरत में करवट बदलते हुए अपने क्षेत्र को विकास के मामले में उत्कृष्ट बनाने के साथ साथ लोगों के चेहरे पर खुशी पेवस्त करने की चाहत लिए खुली आंखों में ही वक्त गुजार देना,और फिर अगले रोज़ उसी तरह दिनचर्या में जुट जाना,हम इतनी सारी बातें किसी और के लिए नहीं बल्कि सही मायने में विकास का पर्याय बन चुके गढ़वा विधायक सह राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर के बारे में की,जिनकी सोच और उक्त सोच को कंक्रीट विवेक और नेक नियति के साथ सफलीभूत होते विकासीय कार्यों के बारे में जितने भी कसीदे कहे और लिखे जाएं वो कम पड़ेगा।

मिथिलेश जैसा दीदावर पैदा होता है: – हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है,तब कहीं जा कर चमन में मिथिलेश जैसा दीदावर पैदा होता है,उक्त पंक्ति कई दशकों पहले जिसने भी लिखा होगा उसके द्वारा ज़रूर मिथिलेश ठाकुर जैसे व्यक्तित्व को ही नज़र किया गया होगा,अभी ऊपर के पाराग्राफ में हमने आपको पढ़ाया की मिथिलेश ठाकुर की कैसी दिनचर्या होती है,अब हम आपको बताएंगे की वो जब अपने आवास स्थित मुलाकात कक्ष में जब लोगों से मिलते हैं तो उनसे योजना नहीं गिनाते,और ना तो ख़ुद की वाहवाही सुनते हैं,बल्कि उनसे उनकी समस्या सुनने और उसका निदान करते हुए लोगों से यही जानने की कोशिश करते हैं की आप अपने साथ साथ गांव का भी हाल बताइए,जो विकासीय योजनाएं कार्यान्वित हो रही हैं उसकी क्या स्थिति है,किस रूप में उसका निर्माण हो रहा है क्योंकि विकास के मामले में लापरवाही और अनियमितता वो सहन नहीं करते,आपको बताएं की किसी भी योजना की आधारशिला रखते वक्त उनके द्वारा जहां एक ओर संवेदक को ससमय पूर्ण करने के साथ लापरवाही नहीं बरतने की ताकीद की जाती है तो वहीं दूसरी ओर लोगों से भी कही जाती है की आप सभी निर्माण की निगरानी करें और कुछ भी अनियमितता आपको नज़र आए तो सीधे मुझे सूचित करें,इसके अलावे आपको बताएं की आज एक ख़बर से संबंधित जब मुझे उनके आवास पर जाने का मौक़ा मिला तो उस वक्त उनका लोगों से मिलना जारी था,जहां बारी बारी लोगों से उनकी समस्या सुनने और समाधान करने के साथ साथ उनके द्वारा कहा गया की लोग हसीन ख़्वाब देखने में कोई गुरेज नहीं करने के साथ साथ अब भी गढ़वा में विकास का नहीं होना बता रहे हैं,उनकी बातों पर हंसी भी आती है,मैं ऐसे तो ना कभी कुछ कहता हूं और ना ही उनकी बातों का जवाब देता हूं,क्योंकि बात का ज़वाब बात से नहीं बल्कि काम से दिया करता हूं,पर आज कहूंगा की पिछले कई साल बनाम तीन साल का आकलन करने के लिए मैं खुली बहस की चुनौती दे रहा हूं,कोई बैठ कर बहस कर ले,मेरा दावा है की कोई जवाब नहीं सूझेगा,क्योंकि मैं खुद से नहीं कहता,वो तो बताने नहीं बल्कि नजर करने की जरूरत है की अनगढ़ गढ़वा को पिछले तीन साल से मैं कैसे और किस रूप में गढ़ रहा हूं।