इस समिति का वजूद ही ख़त्म कर देना उचित रहेगा।


आशुतोष रंजन
गढ़वा

झारखंड में किसी की भी सरकार सत्तासीन हुई है,सत्ता में आते ही उक्त पार्टी के नेताओं में बीस सूत्री समिति के गठन को ले कर इस क़दर बेचैनी बढ़ जाती है की अगर सरकार द्वारा गठन कर दिया जाएगा तो वो अपनी जिम्मेवारी का शत प्रतिशत निर्वहन करते हुए एकदम से कल्याण में जुट जायेंगें,लेकिन ना तो कभी ऐसा हुआ है और ना ही आगे कभी हो पाएगा,क्योंकि वो उक्त समिति के पदधारी मात्र इसलिए बनने के लिए लालायित रहते हैं की एक ओर जहां वो पदधारी कहलाएं,पद मिलेगा तो कद बढ़ेगा तो वहीं दूसरी ओर गाड़ी के आगे बोर्ड लग जाएगा,यह किसी एक सरकार और उसके कार्यकाल में गठित समिति की नहीं हो रही है,बल्कि कमोवेश जितनी भी सरकार अब तलक राज्य सत्ता में आई है उस वक्त जब भी इस समिति का गठन हुआ है वो उद्देश्य को पूरा करने में कारगर सिद्ध नहीं हुआ,बहुत याद करने के बाद याद आ रहा है की जब राज्य में भाजपा की सरकार थी तो बीस सूत्री समिति के गठन के बाद जिला समाहरणालय जाने वाले मुख्य रास्ते के पास में स्थित एक घर में समिति के जिला कार्यालय की शुरुआत हुई थी,दिखा तो नहीं लेकिन हो सकता है पदधारी कभी कभार उक्त कार्यालय में बैठे हों लेकिन नियमतः कभी भी कार्यालय का संचालन नहीं हुआ,यह तो पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल और उस वक्त की समिति की बात हो गई,अब वर्तमान सरकार में गठित बीस सूत्री समिति की बात करना ही पूरी तरह से बेमानी है क्योंकि यहां तो सब नियम ही ताक पर है,नज़र तो आता नहीं है,शायद किसी कोने में होगा,क्योंकि समिति का कार्यालय कभी दिखा नहीं,और शायद ही कभी आम लोगों को समिति के पदधारी से जिला मुख्यालय में मुलाकात होती होगी,यह भी एक रिवाज़ की तरह हर सरकार में देखा गया है,अगर आपको समिति के पदधारियों से मिलना है तो आपको उन तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी,क्योंकि ज़रूरत आपको है उनसे मिलने का,उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है आपसे मिलने की,ऐसे में यह कहने में कोई हिचक नहीं है की सरकार किसी की भी रहे ऐसी समितियों का वजूद ही समाप्त कर देना चाहिए।